कबीर दास दोहे – हिंदी में अर्थ के साथ

कबीर दास, एक ऐसे भक्त संत थे जिन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में समाज को नया दृष्टिकोण दिया। उनके दोहे, जीवन की गहराई को छूते हुए, आज भी हमारे दिलों में गूँजते हैं। कबीर ने भगवान और भक्ति को एक सरल और सुलभ रूप में समझाया। उनके दोहों में जाति, धर्म और रीति-रिवाजों के ऊपर मानवता की महत्ता पर जोर दिया गया है। आइये, हम कबीर दास के कुछ प्रसिद्ध दोहों को उनके अर्थों के साथ समझते हैं:

कबीर दास दोहे – हिंदी में अर्थ के साथ
Image: www.hindigarima.com

कबीर के दोहे: जीवन की सच्चाई और सद्भावना

कबीर के दोहे, जीवन के हर पहलू को छूते हुए, हमें संदेश देते हैं कि कैसे हम जीवन जी सकते हैं। उनके दोहों में ज्ञान, भक्ति, और मानवता का सम्मिलित रूप है:

  • “मन की बात पठि लिखि, मन के ही दोहे।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि मन की बातें ही, मन की लिखी होती हैं, और मन के ही दोहे होते हैं। यानी मानव मन में ही, जीवन की सारी सच्चाई और ज्ञान छिपा हुआ है।
  • “जल में कमल, दल न भिजे; कबीरा खड़ा बजार में, सब का साथ, ना कोई साथ।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जैसे कमल जल में रहते हुए भी न भिजता, वैसे ही वह संसार में रहते हुए भी किसी से नाता नहीं रखता। यह दोहा संसार की माया और आत्मा के निरंतरता बताता है।
  • “कबीरा खड़ा बजार में, लाके दिखावँ सौदा। खरीदे को जो चाहिए, सो देऊँ मुफ्त में सादा।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि वह बाजार में खड़े हैं, सौदा दिखा रहे हैं। जो खरीदना चाहता है, उसे वह मुफ्त देते हैं। यह संदेश बताता है कि सच्चा ज्ञान और भक्ति मुफ्त में मिलती है।
  • “राम नाम जपो, दीन दुखी के काम करो, हरि मिलन की आस करो, कबीरा मोहि सद्गुरु कहो।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि ईश्वर का नाम जपो, दीन-दुखियों की सहायता करो, और भगवान से मिलने की आस रखो। वे स्वयं को सच्चा गुरु कहते हैं।
Read:   Unlocking the Mysteries of Algebra – A Journey into the 3rd Edition of "Abstract Algebra – An Introduction"

कबीर के दोहे: सामाजिक अन्याय और दलितों के प्रति संवेदना

कबीर के दोहों में समाज की कुरीतियों और अन्यायों के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की गयी है। उनका सामाजिक दर्शन, समानता और दलितों को सहारा देने पर केंद्रित है:

  • “दुखिया दुखिया दुखिया, दुख में सब एक समान।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि दुख में सभी समान होते हैं; जाति, धर्म और रुतबा भूल जाते हैं।
  • “जाति न पूछो, साधु की, पूछो गुण, कर्म की।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि सच्चे व्यक्ति की जाति ना पूछो, उसके गुण और कर्म पूछो।
  • “कबीरा खड़ा बजार में, लाके देखावँ सौदा। जिनको मन में प्रभु का प्यारा, सो सो खरीद ले जाए कोदा।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जिसके मन में ईश्वर का प्रेम है, वही इस सौदे को खरीद सकता है, और इसे समझ सकता है।
  • “कबीरा खड़ा बजार में, लाके देखावँ सौदा। जो खरीदे सो पावे, जिनको मन में प्रेम बसा।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि ईश्वर का प्रेम ही सच्चा धन है और इस धन को पाने के लिए ईश्वर के प्रति प्रेम होना जरूरी है।

कबीर के दोहे: ज्ञान, भक्ति, और भौतिकता के बारे में

कबीर के दोहेज्ञान, भक्ति, और भौतिकता जैसे विषयों पर भी प्रकाश डालते हैं:

  • “पानी बिना माछली मरती, बिना साधु न धरा।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जैसे पानी बिना माछली मर जाती है, वैसे ही साधुओं के बिना धरती शून्य होती है।
  • “मनुष्य जन्म दुर्लभ है, तरुवर के छाया में। जो चले, सो तबे, ना जाय सो जा नहीं।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि मानव जन्म दुर्लभ है, जैसे तरुवर के छाया में। जो चलना चाहता है, वही चल सकता है; ना चलने वाला कभी चल नहीं सकता।
  • “अंधे को धोखा देकर चले, पछतावे सोई न जाए।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जो अंधे को धोखा देकर चला, वह पछतावेगा, लेकिन पछतावा सोई नहीं जाए।
Read:   Unlocking the Secrets of EKG – A Comprehensive Guide to "EKG Plain & Simple, 4th Edition"

कबीर के दोहे: कर्मों का महत्व, सच्चा ज्ञान, और भगवान का सानिध्य

कबीर के दोहों में कर्म का महत्व, सच्चा ज्ञान और भगवान का सानिध्य पर जोर दिया गया है:

  • “कर्म कर फिर देख, फल की आशा न कर।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि कर्म करो और उसके फल की आशा मत करो।
  • “बुद्धि तेरी जो कमल को देखे, सो साधु संग बसे।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि जिसकी बुद्धि ने भगवान को देख लिया, वह सच्चा साधु हो जाता है।
  • “कबीरा खड़ा बाजार में, लाके देखावँ सौदा। जो खरीदे सो पावे, जो न खरीदे सो खोए।”

    • अर्थ: कबीर कहते हैं कि भगवान का सानिध्य सच्चा खजाना है, जो इसे खरीदता है, वही पाता है, ना खरीदने वाला खो जाता है।

कबीर के दोहे: आज के समय में प्रासंगिकता

कबीर दास के दोहे, आज भी अपनी प्रासंगिकता नहीं खोये हैं। उनके दोहों में दिये गये ज्ञान और दर्शन, आज के समय में भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं:

  • “जति न पूछो साधु की, पूछो गुण कर्म की।”

    • आज भी, हमारे समाज में जातिवाद एक गम्भीर समस्या है। कबीर दास के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा व्यक्ति अपने गुणों और कर्मों से परिभाषित होता है, जाति नहीं।
  • “मन की बात पठि लिखि, मन के ही दोहे।”

    • आज के समय में, मन ही मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। कबीर दास के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि अपने मन को समझना और उसे नियंत्रित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • “कबीरा खड़ा बाजार में, लाके देखावँ सौदा। जो खरीदे सो पावे, जो न खरीदे सो खोए।”

    • आज के समय में, लोग धन और भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं। कबीर दास के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि ईश्वर का सानिध्य सच्चा खजाना है, और इसे पाने के लिए हमारे अंदर प्रेम और निष्ठा होनी चाहिए।
Read:   The Hidden Falling Kelly Cove VK – Unveiling the Secrets of a Mysterious Online World

कबीर दास के दोहे: शिक्षा और प्रेरणा

कबीर दास के दोहे हमें शिक्षा और प्रेरणा देते हैं। उनके शब्द हमारे मन में एक नया जीवन जागृत करते हैं।

निष्कर्ष

कबीर दास के दोहे, जीवन का सच्चा ज्ञान, भक्ति, और मानवता का एक अद्भुत सम्मिलित रूप है। उनके शब्द आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं, और हमें जीवन को समझने और जीने का नया दृष्टिकोण देते हैं। कबीर दास के दोहों का अध्ययन हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा है, जिससे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

Pictures Of Kabir Das In The Drawing
Image: proper-cooking.info

Kabir Das Dohe In Hindi With Meaning


You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *